कहीं ऐसा नही है आलम जहां तेरी कीर्ति न हो,
हर दिल मे रहते ऐसा नही कोई जिसमे तू न हो,
कैसे भूल सकते है हम तेरे आलम की मुहोब्बत,
हवा बनकर रहते तुम नही ऐसा जहां जीवन न हो।
अम्बिका राही
www.ambikaraheeshayari.blogspot.in
कहीं ऐसा नही है आलम जहां तेरी कीर्ति न हो,
हर दिल मे रहते ऐसा नही कोई जिसमे तू न हो,
कैसे भूल सकते है हम तेरे आलम की मुहोब्बत,
हवा बनकर रहते तुम नही ऐसा जहां जीवन न हो।
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