हे कन्हैया जिसको भी चाहा हमने उसको भी तुमने छीन लिया
कम हो रही थी आग तुमने फिर से घी डाल दिया
जिंदगी की कश्ती पर चढ़कर किनारे पहुंचने वाले थे
एक तूफान भेजकर तुमने फिर से मझधार कर दिया
अंबिका राही
www.ambikaraheeshayari.blogspot.in
हे कन्हैया जिसको भी चाहा हमने उसको भी तुमने छीन लिया
कम हो रही थी आग तुमने फिर से घी डाल दिया
जिंदगी की कश्ती पर चढ़कर किनारे पहुंचने वाले थे
एक तूफान भेजकर तुमने फिर से मझधार कर दिया
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